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jummah mubarak – जुमे की फजीलत

अस्सलामो अलैकुम मेरे प्यारे प्यारे भाइयो और बहनो – सबसे पहले जुम्मा मुबारक ( jummah mubarak) !

आज की पोस्ट में हम जानेंगे जुम्मा की फ़ज़ीलत और जुम्मा की नमाज़ के वारे में ! जैसा की आप सब जानते है की जुम्मा का मुबारक दिन  सभी दिनों का सरदार है !

नमाज़ ए जुमा ( शुक्रवार की नमाज) – Namaz-e-Jummah

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जुमा की नमाज़ ( jummah ki namaz) बहुत जरुरी है और इसकी जुहर की नमाज़ से भी ज्यादा ताकीद की गई है।
हदीस शरीफ में है कि जो शख़्स तीन जुम्मे सुस्ती की वजह से छोड दे अल्लाह उसके दिल पर मुहर लगा देता है और एक रिवायत के अनुसार उसको मुनाफिक और काफिर भी कहा गया है।
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** जुमे की फजीलत ** jummah mubarak ki Fazilat

जुमे के दिन की फजीलत ये है कि ये हफ्ते के सारे दिनों का सरदार है।
इस दिन हजरत आदम अलैहिस्सलाम को पैदा किया गया,
उनको जन्नत में दाखिल किया गया और इसी दिन जन्नत से दुनिया मे भेजा गया।
इसी दिन उनकी तौबा कुबूल हुई तथा वफ़ात भी इस दिन ही हुई।
जुम्मे के दिन एक एसी घड़ी है जिसमें हर दुआ मकबूल होती है।
हमे चाहिए कि जुम्मे के दिन कसरत से रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दुरूद भेजें।
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jummamubarak




** नमाजे जुमा की रकात **

जुम्मे की नमाज में 14 रकात पढी जाती है। और 4- सुन्नत।
ताकीद की गई 2- फर्ज 4- सुन्नत ताकीद की गई 2- सुन्नत ताकीद की गई 2- नफिल।
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** नमाजे जुमा की शर्त ** Namaz e Jummah Condition

जुम्मा फर्ज होने की छ: शर्त है इनमें से एक भी न पाई जाए तो जुम्मा ( jummah) नही होगा।
1- शहर या बडा कस्बा जहां जरूरियात का सभी सामान मिलता हो। शहर से दूर गांव के लोगों को चाहिए की जुम्मे की नमाज शहर में पढ़े।
2- जुम्मा ( jummah) पढाने वाला इमाम सही अकीदा रखता हो जिसको उस दौर के सुल्तान और आलिम और फुकहा के साथ साथ सभी अवाम ने चुना हो।
3- जुहर का वक़्त हो,अगरचे कायदे में​ अत्तहिय्यात के दोरान भी असर का वक़्त हो जाए तो जुमा बातिल हो गया अब जुहर कजा पढ़े।
4- जुमे का खुतबा जुहर के वक़्त में और ऐसे लोगों के सामने हो जिन पर जुमा ( jummah)  वाजिब हो और इतनी आवाज में हो की सब लोग आसानी से सुन सकें।
5- जमाअत यानी इमाम के अलावा कम से कम तीन मर्द हो।
6- आम इजाजत यानी मस्जिद का दरवाजा खोल दिया जाए कि जिस मुसलमान का जी चाहे आ सके कोई रोक टोक न हो।
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जुम्मे ( jummah) की दूसरी अजान जुम्मे ( jummah)  की दूसरी अजान खतीब या इमाम के सामने यानी उसकी मोजूदगी में कही जाए और इतनी आवाज से कि जिसने पहली अजान न सुनी हो वह भी सुन ले और नमाज के लिए आ मस्जिद के अंदर दूसरी अजान को उलमाए किराम ने मकरुह करार दिया है।
खुतबा खत्म होने के फोरन बाद इकामत कही जाए,
खुतबा और इकामत के दोरान बात करना मकरुह है।
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** जुम्मा वाजिब होने की शर्त **

जुमा वाजिब होने के लिये कुछ शर्तें इनमें से एक भी न पाई जाए तो जुमा ( jummah)  फर्ज तो न होगा फिर भी कोई पढना चाहे तो अदा हो जाएगा।
1- शहर में मुकीम हो मुसाफिर पर जुमा फर्ज नही।
2- सेहतमंद हो, ऐसा मरीज जो जुम्मे की जगह तक न जा सकता हो या बीमारी बढने का डर हो तो उस पर जुम्मा ( jummah)  फर्ज नही।
3- आजाद हो किसी का गुलाम न हो।
4- मर्द हो ओरत पर जुमा फर्ज नही।
5- बालिग हो।
6- आकिल हो ओर बालिग हो ये दोनों शराइत हर इबादत के लिये जरुरी हे।
7- आंखें सही हो ओर अपाहिज न हो। लिहाज़ा अंधे पर जुम्मा ( jummah) फर्ज नही।
हां जो अंधा शख्स बिना तकलीफ के बाजार या इधर उधर आ जा सकता हो और जुम्मे की अजान के वक्त बा वजू मस्जिद में मोजूद हो उस पर जुमा ( jummah)  फर्ज है।
8- कैद मे न हो।
9- किसी जालिम बादशाह या चोर लुटेरो का खोफ हो।
10- तूफान सर्दी या तेज बारिश से नुकसान का डर हो..
एक बार फिर से आप सभी लोगों को जुम्मे की बहुत बहुत मुबारकबाद jummamubarak


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