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Eid-Ul-Fitr Islamic Kissa Ek Yatim Bachcha

 

   Eid-Ul-Fitr Islamic Kissa Ek Yatim Bachcha

 आज ईद का दिन है । सूरज निकलते ही बच्चों में नई जिन्दगी की उमंग पैदा हो गई । बूढे, जवानों की तरह सुबह-   सुबह गुस्ल करने लगे । रास्ते में सड़कों पर चहल पहल थी । बूढे खुश थे कि आज ईद है, बच्चे शोर मचा रहे थे कि आज़ ईद है । जवान खुशी से झूम रहे थे कि आज ईद है ।

हर चेहरे पर एक रौनक थी कि आज़ ईद है ! औरतें बनाव, श्रृंगार में मशगूल हैं ! हर तरफ़ खुशी की लहर दौड़ रही थी कि आज़ ईद है ।  हर दिल मुस्करा रहा था, घरों में खुशियों के फव्वारे फूट रहे थे ।

दोनों जहां के मालिक व मुखतार ईद की नमाज़ अदा करने के लिए तशरीफ ले जा रहे हैं ! रास्ते में कंकर व पत्थर मुस्तफा जाने आलम सल्लल्लाहो  अलैहे वसल्लम की जूती शरीफ को चूमने की बरकत हासिल कर रहे हैं ।

सूरज चेहरए मुस्तफा से रोशनी की भीख ले रहा है ! बच्चे गली-कूचों में खेल मेँ मग्न हैँ ! या रसूलल्लाह ! जब हम चलें तो साया हमारा साथ ना दे । जब तुम चलो, ज़मीन चले, आसमान चले, मगर ऐसा भी मकाम आया जहां रुक जाना ही काम आया ।

जुम्मा मुबारक स्टेटस

Eid-Ul-Fitr – ईद उल फ़ित्र

चलते चलते आप रुक गए ! आपने देखा कि बच्चे खेल रहे हैं ! हंसी से फिजा में शोर होने लगता है ! एक बच्चा, दूसरे बच्चे की आँख बंद करके पूछता है कि मैं कौन हूं ! बच्चा उसका ग़लत नाम बता देता है । सब बच्चे हंस देते हैं, बच्चे आज खुशी से फूले नहीं समाते हैं ।

लेकिन एक बच्चा है जो एक गोशे में बैठा हुआ है, उसके जिस्म पर फटे पुराने कपड़े हैँ ! चेहरे पर उदासी है और दिल में ना जाने कितने अरमान दिल तोड़ रहे हैं ! नबीये करीम ने इरशाद फरमाया-ऐ साहबजादे ! क्यों रो रहे हो? तुम्हारी आँखे झील की तरह क्यों बह रही हैं?

*बच्चा पहचान न सका कि हालात पूछने वाले के दामन में कितने लोग पनाह लेते हैं ! *बच्चे को मालूम न था कि ये वोह जाते मुकद्दस हैं जिनके इशारे पर चांद के दो टुकड़े हो गए ।

बच्चे को मालूम ना था कि इन्हीं की बारगाह में दरख्त सलाम के लिए हाजिर होते हैं , बच्चे को मालूम नहीं था कि पत्थर भी इनका कलमा पढ़ते हैं ! or बच्चे को मालूम ना था कि इनकी उंगली के इशारे पर डूबा हुआ सूरज भी वापस पलट आता है ।

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Eid-Ul-Fitr

बच्चे ने कहा मुझे अपने हाल पर छोड़ दीजिए ! मैं आँसू बहा रहा हूँ तो बहाने दीजिए, मैं रो रहा हूं रोने दीजिए ! बच्चे ने कहा आपको मालूम नहीं है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के साथ मेरे बाप एक जंग में शहीद कर दिए गए ।

उसके बाद मेरी माँ ने एक दूसरे शौहर से शादी कर ली ! वोह दोनों मिलकर मेरे माल को खा गए और उसके जालिम शौहर ने मुझे घर से निकाल दिया है ! मेरे लिए खाना नहीं है कि मैं खाऊं, मेरे लिए पानी नहीं है कि मैं प्यास बुझाऊँ । मेरे लिए कपडा नहीं है कि मैं पहनू !

मेरे लिए पनाह लेने की कोई जगह नहीं है, मेरे लिए कोई मकान नहीं है, बस आसमान का शामियाना है और जमीन का फर्श है, जिस पर सो लेता हूं और ! इस जमीन पर एक बोझ हूं ! लेकिन आज अचानक जब मैंने उन बच्चों को खेलते हुए देखा, जिनके माँ-बाप हैं ! जिनके बदन पर नए-नए कपड़े हैं ! जिनके सरों पर हाथ रखने वाले उनके बुजुर्ग हैँ । खुशी के गुलशन में बहारें हैँ, उनके लिए माँ की ममता और बाप का प्यार है । उनकी खुशी को देखकर गुज़रा हुआ ज़माना याद आ गया है ।

Eid-Ul-Fitr

वोह वालिदे गिरामी की कभी न भूलने वाली शफ़क़तों का मंज़र निगाहों के सामने दौड रहा है ! आज मेरा ज़ख्म  ताजा हो गया है ! मेरी मुसीबत ने एक नया रुख ले लिया है ! आज अब्बूजान की मोहब्बत का झलकता हुआ सागर मुझे बैचेनी में मुबतला कर रहा है । यही मेरे रोने का सबब है ।

कुर्बान जाइए सरकारे दो आलम सल्लल्लाहो ‘ अलैहे वसल्लम की नवाज़िश पर कि बच्चे के हाथ को रहमत भरे हाथ में थाम लेते हैँ ! और इरशाद फरमाते हैं,

क्या तुम्हें इस बात पर खुशी ना होगी जब हुजूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम तुम्हारे बाप बन जाएं । हज़रत आयशा तुम्हारी माँ बन जाएं और हज़रत फातिमा तुम्हारी बहन बन जाएं,

हज़रत अली तुम्हारे चचा बन जाएं ! और हसन और हुसैन तुम्हारे भाई बन जाएं ! बच्चे ने जब ये सुना तो दिल की दुनिया बदल गई, मुरझाया चेहरा गुलाब की तरह खिल उठा ! बच्चा दामन-ए-रहमत को पकड़कर मचल गया ! इतनी नवाजिश को देखकर झूम उठा और मचलकर कहने लगा,

Eid-Ul-Fitr

ऐ रहमत वाले आका जब आप मिल गए कायनात मिल गई ! जब “आप मिल गए तो दोनों जहां की दौलत मिल गई, जब आप मिल गए तो दोनों जहां की खुदाई मिल गई ।

सब कुछ खुदा से मांग लिया तुझको मांग कर

उठते नहीं हैं हाथ मेरे इस दुआ के बाद

अल्लाह के प्यारे रसूल हुजूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम इस बच्चे को घर ले जाते हैँ और कुछ अच्छे कपड़े पहनाते हैं और उसकी जुल्फों को संवारते हैं, जिस्म पर खुशबू मली जाती है, आँखों मेँ सुरमा लगाया जाता है । खाना खिला दिया जाता है और सब कुछ करके बच्चे को खुश कर दिया जाता है ।

नबीये करीम ने देखा कि बच्चा दूल्हे की तरह खुश है । लबों पर मुस्कुराहट की कली खिल रही है । जिस्म चांदी की तरह चमक रहा है .। बच्चे को बाहर जाने की इजाज़त दे दी जाती है ! *बच्चा हंसते हुए खुशियों के मोती लुटाते हुए और दौडते हुए उन्हीं बच्चों में मिल गया ! जहां पहले बैठा था -।

बच्चों ने जब इस बदली हुई हालत को देखा तो हैरान रह गए ! कहने लगे तुम तो अभी रो रहे थे ! कौन सी दौलत मिल गई की तुम खुश नज़र आ रहे हो !

Eid-Ul-Fitr

बच्चे ने कहा- सुनो मैं भूख व प्यास की वजह से तड़प रहा था, अब आसूदा हो चुका हू । मेरे जिस्म पर फटे पुराने कपडे थे, गोया मैं नंगा था अब मैंने कपड़े पहन लिए हैं और सबसे बडी दौलत मुझें ये मिली की मैं बच्चा था, बाप का साया सिर से उठ चुका था, माँ की ममता से बहुत दूर था ।

नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने करम फरमाया ! वोह मेरे बाप बन गए ! हज़रत आयशा मेरी माँ बन गईं और सुनो खातूने ज़न्नत हज़रत फातिमा मेरी बहन बन गईं ! हसन और हुसैन मेरे भाई बन गए ! मुझे कायनात की और पूरी दुनिया की दौलत मिल गई तो तमाम बच्चों ने एक ज़बान होकर कहा-ऐ काश !

हम तमाम बच्चों के बाप उस जंग में शहीद हो जाते ! और आज हम भी तुम्हारी तरह दर-दर की ठोकरें खाते रहते ! तो हम सबको भी ये दौलत मिल जाती ।

नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे हमारे बाप होते तो हम लोगों का मुक़द्दर चमक जाता ।

जो सर पे रखने को मिल जाए नअले पाके हुजूर

तो फिर कहेंगे कि हॉ ताजदार हम भी हैँ

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